मनोज सिंह शुमाली, बांदा : Women’day Special हर साल 8 मार्च का यह दिन दुनियाभर में महिलाओं के योगदान, उनके त्याग और साहस को समर्पित रहता है। आज तमाम संघर्षों से लड़ते हुए महिलाएं हर क्षेत्र में नई कीर्ति स्थापित कर रही हैं। बुंदेलखंड के बांदा में भी ऐसी ही कुछ अपराजिता हैं जो अपनी विरासत को बखूबी संभाल रही हैं। आइये मिलिए इन महिलाओं से, जिन्होंने जीवन के संघर्षों से कभी हार नहीं मानी। आज उपलब्धियों का नया इतिहास रच रही हैं। ये हैं बांदा की अपराजिता।
नाना-दादा की विरासत को संजोती राजनेता अमिता बाजपेई
बांदा में महिला राजनेता के तौर पर अमिता बाजपेई एक ऐसा निर्विवादित नाम है जिन्हें अपने दादा और नाना से समाजसेवा और राजनीति की एक समृद्ध विरासत मिली है। बुंदेलखंड में रूढ़िवादिता की चुनौतियों को पार कर अमिता अपनी विरासत को बखूबी संभाल रही हैं। उन्होंने वर्ष 2009 में बांदा-चित्रकूट लोकसभा और वर्ष 2012 में बांदा सदर से चुनाव लड़ा। चुनावों में उन्हें जीत भले ही न मिली हो, लेकिन टक्कर इतनी जबरदस्त दी, कि विरोधी पस्त नजर आए। लोगों ने स्वीकारा कि उनमें राजनीतिक नेतृत्व की भी क्षमता है।
पति आर्मी अफसर, बाबा ने भू-आंदोलन में निभाई भूमिका
पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें तो अमिता के पति आर्मी अफसर रहे हैं। बेटा बिजनेसमैन है। उनके नाना स्व. मुन्नू लाल अवस्थी, बांदा-बुंदेलखंड में जाना-पहचाना नाम हैं। उन्होंने स्टेशन रोड पर प्राचीन धर्मशाला से लेकर कुआं-पोखर और जनकल्याण के कार्यों का इतिहास रचा। उनके बाबा स्व. पंडित ब्रह्मदेव बाजपेई ने विनोवा जी के साथ भूदान आंदोलन में भूमिका निभाई। महिला दिवस पर उन्होंने संदेश दिया। कहा कि महिलाएं जहां हैं, वहीं लक्ष्य बनाकर शुरूआत करें, आगे बढ़ें।
संध्या कुशवाहा ने ससुराल में संभाली शिक्षक संस्थान की डोर
महिला सशक्तिकरण के क्रम में अगला नाम संध्या कुशवाहा का है। भागवत प्रसाद मेमोरियल (BPM Acadmy) स्कूल की डायरेक्टर संध्या शिक्षा के क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम बन गई हैं। विद्यालय का संचालन उनके कुशल नेतृत्व में चल रहा है। इंग्लिश से एमए और मैनेजमेंट में स्नातक (MBA) संध्या के पति अंकित कुशवाह अधिवक्ता हैं।
बखूबी निभा रहीं मां और स्कूल डायरेक्टर दोनों की भूमिका
एक छोटी बेटी की मां संध्या शिक्षण संस्थान के संचालन की जिम्मेदारी बखूबी संभाल रही हैं। उनके नेतृत्व में बीते कुछ वर्षों में कालेज का नाम तेजी से बढ़ा है। उनके खाते में सफलती की कई उपलब्धियां आई हैं। नेशनल लेबल की खेलकूद प्रतियोगिताओं के आयोजन भी संभव हुए हैं। इंटरनेशनल वूमेन-डे पर बाकी महिलाओं को उनका संदेश है कि आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ें। एक मुकाम हासिल कर पहचान बनाएं।
कम उम्र में शिक्षा जगत में बड़ा नाम बनकर उभरतीं प्रवी यादव
अंतरराष्ट्रीय वूमेन डे पर हमारी तीसरी शख्सियत का नाम प्रवी यादव है। करीब 22 साल की प्रवी कम उम्र में जो कर रही हैं, उसे करने का हौंसला बड़े-बड़ों में नहीं होता। यही वजह है कि बीते 2-3 साल में बांदा के शिक्षा जगत में कालेज प्रबंधन के बीच उनका नाम तेजी से उभरा है। कुछ वर्ष पहले अपने पिता स्व. विनोद यादव के देहांत के बाद यह होनहार बेटी उनकी विरासत को बखूवी संभाल रही है।
चुनौतियों से जूझतीं लाखों-करोड़ों बेटियों के लिए बड़ी प्रेरणा हैं प्रवी
उनकी उपबल्धियां विषम परिस्थितियों से जूझती लाखों-करोड़ों बेटियों के लिए प्रेरणा हैं। महिला दिवस पर प्रवी का कहना है कि मानव समाज की संरचना में महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। महिलाएं समाज की रीढ़ होती हैं और उनके बिना समाज की पूर्णता संभव नहीं है।हमउम्र लड़कियों को उनका मैसेज है कि शिक्षा के साथ कुछ बनने का टारगेट भी फिक्स रखें। उसके लिए मेहनत करें। हिम्मन न हारें, बुरा होने के बाद अच्छा भी होता है।
पति का देहांत, संघर्षों से जंग, लेकिन नहीं मानी सीमा नंदा ने हार
महिला दिवस पर महिलाओं के त्याग, संघर्ष और उपलब्धियों की बात की जाए और बांदा की महिला व्यवसाई सीमा नंदा का जिक्र न हो, तो यह बेमानी होगी। जी हां..जय मां दुर्गा अटैची सेंटर की मालकिन सीमा नंदा संघर्ष का वो चेहरा हैं जिन्होंने कोरोना की दूसरी लहर में अपने पति स्व. राजेश कुमार नंदा को खो दिया।
एक के बाद टूटा संकटों का पहाड़, बेटी संग हिम्मत से संभाला व्यवसाय
घर में ग्रहणी की भूमिका निभाने वाली सीमा पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। परिवार वालों ने मुंह मोड़ लिया। जो अपने थे वह मदद के नाम पर पीछे हट गए। फिर भी उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला। बेटी इस संकट के दौर पर बड़ी सहारा बनी। संकट में अक्सर अपने साथ छोड़ जाते हैं। सीमा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह कहती हैं कि उनकी बेटी कशिश संकट में मजबूत सहारा बनी। बेटी के सहारे उन्होंने फिर से सबकुछ संभाला है। महिलाओं को सीमा का मैसेज है कि संकट कितना ही बड़ा क्यों न हो, घबराएं नहीं। कोई साथ दे या न दे, आप धैर्य से काम करें। सब अच्छा होगा।
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