मनोज सिंह शुमाली, ब्यूरो (बांदा) : वफादारी का जब कहीं जिक्र होता है तो इंसानों से पहले बेजुबान जानवरों का ख्याल आता है। फिर चाहे वह कुत्ता हो, बिल्ली हो या कोई गोवंश। इन बेजुबान वफादारों की सेवा का जिम्मा भी एक शख्सियत ने उतनी ही वफादारी से करने की ठानी है। इस शख्सियत का नाम है आराधना। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के बांदा जिले की रहने वाली हाइली क्वालीफाइड आराधना सिंह एक रिटायर्ड कमिश्नर की बेटी हैं। कम उम्र में आराधना बेजुबानों की सेवा की जो अद्भुतगाथा लिख रही हैं, वह हर किसी के बस की बात नहीं है।
रोज 40 किलो चावल, सब्जियों से बनता है बेजुबानों का खाना
अन्ना पशुओं के लिए रोज डलवाती हैं 1 कुंटल भूसा
जी हां, आराधना रोज करीब 40 किलो चावल का खाना पकवाकर स्ट्रीट डाॅग के लिए तैयार कराती हैं। फिर उसे रिक्शे से गली-गली कई जगहों पर बंटवाया जाता है। यह सिलसिला रोजाना चलता है। उनके खाने के इंतजार में एक निश्चित समय पर आपको स्ट्रीट डाॅग बेसब्री से इंतजार करते आसानी से मिल जाएंगे। साथ ही आराधना के घर के आसपास गोवंश भूसा खाने के लिए खड़े रहते हैं। इनके लिए रोज करीब 1 कुंटल भूसा डलवाया जाता है।
घायल होने पर डाक्टर से इलाज और फिर देती हैं आश्रय
इतना ही नहीं अगर किसी कुत्ते या गौवंश को चोट लग जाती है। वह घायल होता है तो जानकारी होने पर आराधना बिना देरी किए डाॅक्टर और दूसरी मदद लेकर पहुंचती हैं। ट्रीटमेंट कराती हैं और जरूरत पड़ी तो सर्जरी तक कराती हैं। पूरा खर्च खुद उठाती हैं। ऐसे ही दो पैरालाइसेस डाॅग आज भी इलाज के बाद उनके अस्थाई शेल्टर होम में पल रहे हैं। वह बताती हैं कि इनमें से एक डाॅग पर किसी ने कार चढ़ा दी थी। दूसरा भी उनको बेहद गंभीर रूप से घायल हालत में मिला था। इसके अलावा आराधना कई गाय, बैल, घोड़े और गधों का भी इलाज करा चुकी हैं।
..तो मां से मिली आराधना को बेजुबानों की सेवा की प्रेरणा
अब सवाल उठता है कि आराधना को यह सब करने की प्रेरणा कहां से मिली? इस सवाल पर कहती हैं कि करीब 3 साल पहले उन्होंने अपनी मां इंदुबाला के साथ गलियों में घूमने वाले स्ट्रीट डाॅग और गोवंशों के लिए खाना-खिलाने का छोटा सा प्रयास शुरू किया। साथ ही तपती गर्मी में घर के आसपास पानी और भूसे की व्यवस्था भी करने लगीं। फिर समय के साथ-साथ दायरा बढ़ता गया। देखते ही देखते उनके अस्थाई आश्रय स्थल में गोवंश और दूसरे जानवरों के अलावा स्ट्रीट डाॅग भी हैं।
फिर कोरोना ने दिया ऐसा दर्द, जिसने बदल दिया नजरिया
आराधना की जिंदगी में सबकुछ ठीक चल रहा था कि इसी बीच उन्होंने कोरोना की दूसरी त्रासदी में अपनी मां को खो दिया। नोएडा के एमिटी कालेज से MBA और लखनऊ के BBDNITM कालेज से बीटेक (B.Tech) आराधना के जिंदगी के लिए यह काफी दुखद पल थे। साथ ही खुद को संभालने का मुश्किल दौर भी। इस दर्द ने उनका पूरा नजरिया ही बदल दिया।
मां के सपनों को उन्हीं के संस्कारों से पूरा करने की ठानी
खुद को संभालते हुए उन्होंने मां के सपने को उनके संस्कारों के जरिए ही और मजबूती दी। तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए मां के नाम से इंदु फाउंडेशन की स्थापना की। यह आज एक ऐसी एनजीओ है जो फिलहाल अपने दम पर काम कर रही है। आने वाले दिनों में आराधना का सपना गौशाला लेकर अपनी सेवा के दायरे और बढ़ाना है।
नेक काम में भी ऐसी मुश्किलों से होता है रोज सामना
आराधना कहती हैं कि कुत्तों की सेवा में उनको मुश्किलें भी होती हैं। हर कोई व्यक्ति मदद को हाथ नहीं बढ़ाता है। बहुत कम लोग इस बेजुबान जानवर का दर्द समझते हैं और मदद को आगे आते हैं। आराधना कहती हैं कि एक कुत्ता एक इंसान का सबसे ज्यादा वफादार दोस्त साबित होता है, लेकिन उनका अनुभव कहता है कि इंसान इसी जानवर के प्रति काफी निष्ठुर और निर्दयी साबित हो रहा है।
स्ट्रीट डाॅग संग बेहद क्रूर व्यवहार करते हैं लोग
वह कहती हैं कि कुछ लोग तो बेवजह कुत्तों को कभी पत्थर उठाकर मारने लगते हैं तो कभी गाय या गोवंशों पर गाड़ी चढ़ाकर निकल जाते हैं। स्ट्रीट डाॅग के प्रति ऐसे लोगों का आचरण काफी डरावना और ह्रदयविदारक है। इसमें कोई दो राय नहीं है। वह कहती हैं कि आम लोगों का असहयोग भी एक समस्या है। कुछ लोग मदद की बात छोड़िए, समस्याएं खड़ी करने से बाज नहीं आते।
मानसिक टकराव के बीच करना पड़ता है काम
वह कहती हैं कि कुछ ऐसे लोगों से भी सामना होता है जो बेजुबानों को आसपास देखना नहीं चाहते औरखाना खिलाते वक्त भी उन्हें भगाने की कोशिश करते हैं। आराधना बताती हैं कि ऐसे लोगों से एक मानसिक टकराव होता ही रहता है। फिर रास्ता निकालकर काम पूरा किया जाता है। आराधना की सेवा अनवरत जारी रहे और लोग बेजुबानों की कद्र करना सीखें, यही आराधना की ‘आराधना’ होगी।
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