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बांदा निकाय : आखिर क्यों सुर्खियों में छाईं सभासद प्रत्याशी आराधना..?

Banda body : Why suddenly in headlines, Aradhana Singh, candidate from Indiranagar ward
आराधना सिंह।

मनोज सिंह शुमाली, बांदा : निकाय चुनाव को लेकर प्रदेश के बाकी हिस्सों की तरह बुंदेलखंड के बांदा जिले में भी माहौल चढ़ चुका है। इसी बीच एक ऐसा नाम सुर्खियों में छाया है जिसने सभी राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों में नया कौतूहल पैदा कर दिया है। यह नाम है आराधना सिंह का। बांदा के इंदिरानगर की रहने वाली आराधना जो अपनी मां को कोरोना त्रासदी में खो चुकी हैं, एक रिटायर्ड अधिकारी की बेटी हैं। वह बीटेक-एमबीए और एलएलबी क्वालीफाई करने के बाद सभासद के चुनाव में उतरी हैं।

नोएडा-लखनऊ से हाइली क्वालिफाइड

लखनऊ, नोएडा जैसे शहरों में रहकर हाइली क्वालीफाइड हुईं हैं। वकालत करने के बाद दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस भी कर चुकी हैं। अब आप समझ सकते हैं कि इतनी क्वालीफाइड लड़की अगर बांदा से सभासद का चुनाव लड़ेगी तो चर्चा तो होगी ही। शहर के इंदिरानगर वार्ड-31 से आराधना एक निर्दलीय प्रत्याशी हैं। वह किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ी हैं।

..तो इसलिए चुनाव लड़ने की ठानी

उच्च शिक्षा के बाद आराधना ने सभासद चुनाव लड़ने की क्यों ठानी। इसका जवाब तलाशने के लिए हम उनसे मिलने पहुंचे। हमें जो जवाब मिला, वह दिल छू लेने वाला था। आराधना सिंह ने कहा कि उन्होंने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी से एलएलबी की। लखनऊ के बीबीडीएनआईटीएम कालेज से बीटेक (B.Tech) किया। फिर नोएडा में एमिटी कालेज से MBA क्वालीफाई किया। इतना ही नहीं दिल्ली की 30 हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस भी की।

मां के संस्कारों को बनाया जिंदगी का लक्ष्य

इसी बीच वैश्विक संकट कोरोना के दौर में वह वापस बांदा लौट आईं। यहां कोविड त्रासदी में उन्होंने अपनी मां इंदुबाला को खो दिया। वह कहती हैं कि इस दर्द ने जिंदगी के प्रति उनका पूरा नजरिया ही बदल दिया। मां के साथ स्ट्रीट डाॅग और दूसरे जानवरों की सेवा करने के मिले संस्कारों को उन्होंने अपनी जिंदगी एक लक्ष्य बना लिया।

मां के नाम से एनजीओ बनाकर सेवा

असहायक बेजुबानों के खाने-पीने से लेकर बीमार या चोट लगने पर इलाज कराना। यह उनके लिए रोज की बात है। आराधना कहती हैं कि यह काम वह बीते करीब 3 साल से कर रही हैं। उन्होंने डेढ़ साल पहले इसे एनजीओ के रूप में पहचान दी। मां की याद में एनजीओ का नाम इंदु फाउंडेशन रखा। उनका कहना है कि समाजसेवा का दायरा बढ़ाने का आईडिया ही उनको चुनाव तक लाया है।

दूसरों से अलग है प्रचार का तरीका भी

वह कहती हैं कि छोटे स्तर से वह समाज के बड़े तबके की सेवा कर सकती हैं। बहरहाल, उनका चुनाव लड़ने का फैसला सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। बताते चलें कि बांदा में निकाय चुनाव 11 मई को है। उनका प्रचार-प्रसार का तरीका भी एकदम अलग है। न ढोल-नगाड़े, न शोर-शराबा और न नारेबाजी। वह सादगी से एक या दो महिलाओं के साथ डोर-टू-डोर कंपेन कर रही हैं। अपनी बात रख रही हैं।

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