समरनीति न्यूज, लखनऊ डेस्क : इलेक्टोरल बांड स्कीम, यानी चुनावी चंदा। इसके लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई के बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। चुनावी चंदे वाली इलेक्टोरल बांड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द करते हुए कहा है कि “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं। चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा है कि राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।”
SBI को 31 मार्च तक अबतक के योगदान का विवरण बताने के निर्देश
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड को तत्काल रोकने के आदेश दिए हैं। साथ ही निर्देश दिए हैं कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) चुनावी बांड के माध्यम से अबतक हुए योगदान के सभी विवरण 31 मार्च तक चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए। सर्वोच्च अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि वह 13 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर यह पूरी जानकारी साझा करे।
सर्वसम्मति से लिया गया यह ऐतिहासिक फैसला, 2017 से हुई थी शुरू
खास बात यह है कि यह फैसला सर्वसम्मति से हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवी चंद्रचूड़ ने कहा है कि मामले में सुनवाई कर रहे सभी जजों ने सर्वसम्मति के साथ अपना फैसला सुनाया है। भारत सरकार ने इलेक्टोरल बांड योजना की घोषणा 2017 में की। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागू किया।
सरल भाषा में ऐसे समझें क्या है चुनावी चंदे वाली एलेक्टोरल बांड योजना
दरअसल, सरल भाषा में इसे ऐसे समझा जा सकता है कि इलेक्टोरल बांड राजनीतिक दलों को चंदा देने का वित्तीय माध्यम है। इसे कोई भी व्यक्ति या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ले सकता है। फिर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को गुमनाम ढंग से दान भी दे सकता है। इलेक्टोरल बांड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं दिया जाता है। भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000, 10,000 और 1 लाख से 10 लाख रुपए में यह बांड खरीदा जा सकता है।
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