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BJP@Banda : चाटुकारों से घिरे जनप्रतिनिधि क्या जिता पाएंगे निकाय चुनाव..?

मनोज सिंह शुमाली, बांदा : उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव का बिगुल फुंक चुका है। सभी राजनीतिक दल अपना पूरा जोर इन चुनावों में लगाने वाले हैं। इसी क्रम में बुंदेलखंड के बांदा की बात करें तो सवाल उठता है कि चाटुकारों से घिरे रहने वाले जनप्रतिनिधि क्या निकाय चुनाव जिता पाएंगे..? दरअसल, बात जब लोकसभा और विधानसभा चुनावों की आती है तो मोदी-योगी के नाम पर लगभग एक तरफा चुनाव होते हैं। दोनों नेताओं को बुंदेलखंड की जनता खूब पसंद करती है। दोनों नेताओं का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता है, लेकिन स्थानीय चुनाव, लोकल नेताओं यानी जनप्रतिनिधियों की साख पर निर्भर करता है। ऐसे में पुराना अनुभव भाजपा के लिए अच्छा नहीं है।

लोकसभा और विधानसभा में चलता है मोदी-योगी का जादू, मगर..

इसकी वजह स्थानीय नेताओं की कम होती लोकप्रियता और जनता के बीच कमजोर पकड़ है। इस बात को आप इस तरह से समझ लीजिए। जल शक्ति विभाग के राज्यमंत्री रामकेश निषाद के विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2021 में भाजपा ने जिस जिला पंचायत सीट जसपुरा-12 को बड़ अंतर से जीता। उसी सीट को 2022 में उप चुनाव में हार गई। सपा ने इस सीट को कांटे की टक्कर देते छीन लिया।

यानी राज्यमंत्री के क्षेत्र में स्थानीय नेता जिला पंचायत सदस्य की सीट तक नहीं बचा सके। आप समझ लीजिए, जब राज्यमंत्री के क्षेत्र में यह हाल है तो बाकी जगह क्या होगा। इससे पहले जिला पंचायत 2021 के चुनावों में भी पार्टी को स्थानीय संगठन और नेताओं की कमजोर रणनीति के कारण इतनी सीटें भी नहीं मिली थीं कि अपना अध्यक्ष बना सके। हालांकि, बाद में अध्यक्ष पद पर पार्टी ही काबिज हुई।

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इसी तरह बांदा-चित्रकूट लोकसभा सीट के सांसद आरके सिंह पटेल हैं। आम जनता के बाद धारणा है कि वह बांदा में कुछ कार्यक्रमों में ही नजर आते हैं। दरअसल, सांसद का घर चित्रकूट में है, तो स्वभाविक है कि वहीं रहेंगे भी। आम जनता के बीच यह सोच बन चुकी है कि बांदा उनके लिए दूसरे नंबर पर है, पहले पर चित्रकूट है। बांदा में सांसद का कोई प्रतिनिधि या कार्यालय है या नहीं, इसे लेकर आज तक संशय बरकरार है।

भाजपा के लिए स्थानीय चुनावों में अच्छा नहीं अनुभव

बांदा सदर विधानसभा की बात करें तो 2017 में जहां बीजेपी के मौजूदा विधायक प्रकाश द्विवेदी लगभग 30 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे, वहीं 2022 आते-आते इसी सीट पर जीत का अंतर 15 हजार ही रह गया। लोकप्रियता का ग्राफ यहां भी घटा।

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इसी तरह नरैनी विधानसभा से महिला विधायक ओममणि वर्मा भी बीते दिनों अपने प्रतिनिधि के खिलाफ धरना-प्रदर्शन को लेकर चर्चा में रहीं। एक परिवार ने उनपर उत्पीड़न का आरोप लगाया। मुख्यालय के अशोक लाट तिराहे पर धरना-प्रदर्शन भी किया। काफी फजीते हुए। कहीं न कहीं पार्टी की साख पर भी बात आई। आगे अभी पूरे चार साल बाकी हैं।

2024 में भी होगी स्थानीय जनप्रतिनिधियों की परीक्षा

हालांकि, निकाय के बाद इन जनप्रतिनिधियों की एक असली परीक्षा 2024 में भी होगी। फिलहाल तो हालात यह हैं कि लोकप्रियता के मामले में जिले में स्थानीय जन प्रतिनिधियों में किसी को भी 10 में से 10 नंबर नहीं दिए जा सकते। अब निकाय चुनाव सिर पर हैं। पार्टी को लोकसभा और उससे पहले नगर निकाय चुनाव में जीत-हार को लेकर नए सिरे से चिंतन करना चाहिए।

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