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UP : प्रभारी मंत्री के सामने अफसरों की नासमझी ने बिगाड़ी बात, खुली पोल..

Banda : ignorance of officers spoiled matter in front of minister in charge, exposed local politics

मनोज सिंह शुमाली, बांदा : अति उत्साह से घिरे बांदा जिला प्रशासन के अधिकारियों की नासमझी से प्रभारी/कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह के मंच पर बात बिगड़ गई। दरअसल, प्रभारी मंत्री के कार्यक्रम के मंच से जिले के पहले नागरिक यानी जिला पंचायत अध्यक्ष का नाम ही स्वागत लिस्ट से गायब कर दिया गया।

विकसित भारत संकल्प यात्रा के शुभारंभ का मौका

जिलाध्यक्ष का नाम भी वरिष्ठता के हिसाब से देर में पुकारा गया। इस तरह प्रशासनिक नासमझी से पार्टी नेताओं के बीच असहज स्थिति हो गई। जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल ने मंच पर नाराजगी जाहिर करते हुए बांदा के सीडीओ को आड़े हाथ लिया। साथ ही कार्यक्रम को संबोधित करने से भी इंकार कर दिया।

जिपं अध्यक्ष ने नाराजगी जताई, कही यह बात

दरअसल, यह सबकुछ बांदा के माटा स्थित एक कालेज प्रांगण में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित विकसित भारत संकल्प यात्रा के शुभारंभ कार्यक्रम में हुआ। प्रभारी मंत्री मुख्य अतिथि थे। सभी प्रमुख जनप्रतिनिधियों और नेताओं का एक-एक कर मंच से स्वागत किया जा रहा था। बात तब बिगड़ी जब, जिला पंचायत अध्यक्ष का नाम नहीं पुकारा गया।

अधिकारी बोले, स्वागत लिस्ट में नहीं था नाम

जबकि वह शुरू से ही मंच पर मौजूद थे। जिला पंचायत अध्यक्ष आहत नजर आए। इससे प्रशासनिक सूझबूझ पर सवाल खड़े हो गए। जिपं अध्यक्ष ने मंच पर ही सीडीओ को बुलाकर उनसे इस बारे में सवाल किया। सीडीओ को यह जबाव देते सुना गया कि पार्टी से मिली सूची में आपका नाम नहीं था, इसलिए संचालन कर रही उद्घोषिका नाम नहीं पुकार पाई। हालांकि, जिपं अध्यक्ष का कहना था कि यह पहली बार नहीं हुआ है। इस मामले को लेकर पार्टी नेताओं में अब तरह-तरह की चर्चाएं हैं।

बड़े नेता भी नजर आए असहज, समझाया-बुझाया..

अधिकारियों की नासमझी किसी के गले नहीं उतर रही है। लोगों का कहना है कि अगर लिस्ट में नाम नहीं था तो अधिकारी उसे जोड़ भी सकते थे। वह भी उस स्थिति में, जब मंच से ऐसे नेताओं के नाम पुकारे गए जो उतना महत्व नहीं रखते थे, जितना उनको पेश किया गया। बहरहाल, घटनाक्रम ने कहीं न कहीं प्रभारी मंत्री को भी असहज किया। बड़े नेता यह बात भलि-भांति समझते हैं कि यही छोटी-छोटी बातें राजनीति में आगे चलकर तिल का पहाड़ बन जाती हैं। अब लोग क्यास लगा रहे हैं कि यह भूल थी या लोकल पाॅलिटिक्स..?

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