समरनीति न्यूज, बांदा : बांदा में ब्रिटिश काल में बने ऐतिहासिक भवन स्थित हार्पर क्लब कुछ लोगों की मनमानी और मठाधीशी के चलते अपनी गरिमा खो रहा है। 2016 के बाद से एजीएम मीटिंग नहीं कराई गई। सचिव पद का चुनाव 4-5 साल बाद कराया गया। क्लब में पुलिस रेड में जुआ पकड़ा गया। ये सब हाल तब है जब हार्पर क्लब एक संवैधानिक संस्था के अंतर्गत काम कर रहा है। इसकी अध्यक्ष खुद जिलाधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल हैं। दरअसल, बांदा जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाला यह क्लब वर्तमान में कुछ ऐसे लोगों के हाथों में खिलौना बनकर रह गया है, जो अधिकारियों को गुमराह करने की अच्छी काबलियत रखते हैं।
2016 के बाद नहीं हुई AGM मीटिंग, सचिव चुनाव भी कई साल बाद
ऐसे लोग अधिकारियों के आगे-पीछे घूमकर उनको गुमराह करते हैं। फिर अपना उल्लू सीधा करते हैं। पूरे बाइलाज के नियमों को किनारे कर दिया गया है। इन्हीं लोगों की देन है कि कोरोना काल में पुलिस को इस क्लब पर छापा तक मारना पड़ गया। वहां जुआ होने की शिकायत थी, पुलिस छापे मेें शिकायत सही मिली। जुआ पकड़ा गया था। कई सदस्यों की सदस्यता भी प्रशासन ने खत्म कर दी थी।
हार्पर क्लब में जुआ पकड़ने की हुई थी FIR, सदस्यता हुई थी खत्म
सचिव का चुनाव 4-5 साल तक नहीं कराया गया। एजीएम की बैठक भी 2016 से अबतक नहीं हुई है। खुद क्लब के कुछ सदस्य इस मनमानी से नाखुश हैं, लेकिन बोल नहीं पा रहे हैं। हार्पर क्लब से जुड़े सूत्रों का कहना है कि क्लब एक सरकारी संस्था हैं, इसके लिए संचालन समिति है जिसकी अध्यक्ष खुद बांदा के जिलाधिकारी हैं, लेकिन उनतक सही बात पहुंच नहीं पाती। इस समय जिलाधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल इसकी अध्यक्ष हैं, लेकिन अधिकारियों को अंधेरे में रखते हुए समिति के कुछ पदाधिकारी मनमानी पर उतारू हैं।
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क्लब के विश्वनीय सूत्र बताते हैं कि 2016 के बाद से समिति की एजीएम मीटिंग नहीं कराई गई है, जबकि बाइलाज है कि हर महीने यह बैठक हो। नहीं तो कम से कम साल में दो बार तो एजीएम मीटिंग जरूर हो।
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सचिव पद का चुनाव भी कोरोना की आड़ में कई साल बाद कराया
सूत्र बताते हैं कि इससे पहले सचिव पद के लिए कई साल चुनाव नहीं कराया गया। सचिव पद पर एक ही व्यक्ति को कई साल तक बनाए रखा गया। नियम यह है कि हर साल सचिव और अन्य पदों के लिए चुनाव हों। कुछ ही चेहरे बार-बार समिति के पदाधिकारी बन रहे हैं। वही मनमानी कर रहे हैं।
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इसके लिए तर्क है कि कोरोना के चलते चुनाव नहीं कराए जा सके। हालांकि, यह सही नहीं है। खुद क्लब के कई सदस्य इस रवैये पर अंदरूनीतौर पर नाराज हैं। कोरोना काल में ही हार्पर क्लब में जुआ खेलने की शिकायत मिलीं थी। पुलिस ने हार्पर क्लब पर छापा मारा। छापे के दौरान बाहर से क्लब का गेट बंद मिला। इसपर पुलिस दीवार कूदकर पहुंची तो शहर के कुछ रसूख वाले लोग जुआ खेलते मिले।
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क्लब परिसर में स्थित जिम के किराय खर्च को लेकर भी उठे थे सवाल
इनमें से कुछ तो पुलिस को देखकर ऐसे भागे कि दीवार कूदने में अपनी टांग भी तोड़ बैठे थे। अब ऐसे लोगों के नाम का जिक्र करना यहां ठीक नहीं है, लेकिन सब जानते ही हैं।
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वाकयदा पुलिस ने लिखा-पढ़ी भी की थी। तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट सुरेंद्र सिंह चाहल ने तब हार्पर क्लब के तब के क्लब समिति के पदाधिकारियों को जमकर फटकार भी लगाई थी। कई सदस्यों की सदस्यता भी तत्कालीन डीएम ने समाप्त कर दी थी। दरअसल, इस सबकी वजह अधिकारियों के आगे-पीछे घूमकर उनको गुमराह करने वाले ऐसे लोग हैं। यही वजह है कि इन लोगों की वजह से बांदा का यह ऐतिहासिक क्लब अपनी गरिमा खो रहा है। क्लब में स्थित जिम के किराय के खर्च को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। उसपर फिर बात करेंगे..।
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