मनोज सिंह शुमाली, ब्यूरो : जेलों में अपराधियों का सिक्का चलना कोई नई बात नहीं है। सब जानते हैं कि जेलों में बंद माफियाओं को वो सारे ऐशोआराम मिलते हैं, जो वो चाहते हैं। सवाल उठता है कि क्या बिना जेल अधिकारियों और कर्मचारियों के यह हो सकता है..? हाल ही में यूपी की अतिसंवेदनशील बांदा और चित्रकूट जेलों में जो हालात उभरकर सामने आए हैं, उसके बाद यह सवाल और बड़ा हो गया है कि माफिया डान बाप-बेटे की कहानी में जेल का कितना रोल रहा है। चित्रकूट जेल में माफिया डाॅन मुख्तार अंसारी के बेटे सपा विधायक अब्बास अंसारी को उसकी पत्नी निखत अंसारी के साथ पकड़ा गया।
अब्बास का बाप मुख्तार अंसारी तो बांदा में बंद
खुलासे में पता चला कि निखत अंसारी महीनों से जेल में पति अब्बास के साथ घंटों घर जैसे माहौल में रहती थीं। यह तो सिर्फ ट्रेलर था। अब्बास का बाप डाॅन मुख्तार तो बांदा जेल में बंद है। कहीं बांदा जेल में पूरी कहानी की स्क्रिप्ट तो तैयार नहीं हो रही..?
डीएम-एसपी के अचानक जेल पर छापे में खुलास हुआ कि अब्बास पत्नी के साथ पूरे ऐशो-आराम के साथ समय बिताता था। जेल अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत थी और चित्रकूट के डीएम-एसपी का छापा न पड़ता को खुलासा भी न होता। अब यही हालात बांदा जेल में भी दिखाई दे रहे हैं। जेल के उच्चाधिकारी बांदा में भी चित्रकूट वाली वही गलतियां फिर दोहरा रहे हैं।
इसलिए बार-बार जेलों में दांव पर लग रही सरकार की साख
हालांकि, सरकार ने इस मामले में जो कार्रवाई की, वह भी नजीर है, लेकिन सवाल यह उठता है कि सबकुछ होने के बाद ही जेल मुख्यालय या शासन की आंखें क्यों खुलती हैं। अगर समय रहते पहले से सावधानी बरती जाए तो ऐसे मामले ही क्यों हों। वरना सरकार की साख तो इसी तरह दांव पर लगी रहेगी।
चित्रकूट के संदर्भ में बांदा जेल की बात करें, जहां अब्बास अंसारी का बाप माफिया डान मुख्तार अंसारी खुद बंद है। चर्चा तो यहां तक है कि चित्रकूट जेल में तो सिर्फ ट्रेलर था, बांदा जेल में तो इससे भी बड़ी घटना हो सकती है। आजकल बांदा जेल को लेकर अंदरखाने यह चर्चा भी खूब है कि कहीं ऐसी कोई घटना न हो जाए। यह चर्चा इसलिए है क्योंकि यहां कई अधिकारियों-कर्मचारियों की एक वर्ष से अधिक समय से तैनाती है। कुछ अधिकारी-जेलकर्मी इससे भी ज्यादा समय से जमे हैं।
चित्रकूट जेल में भी लंबे समय से जमे थे अधिकारी-कर्मचारी
चित्रकूट जेल की भी यही स्थिति थी, वहां जब अब्बास अंसारी वाली घटना हुई तो जेलर-जेल अधीक्षक और जेलकर्मियों की तैनाती लंबे समय से मिली। जेलर संतोष कुमार लगभग 3 साल से जमे थे।
जेल अधीक्षक अशोक सागर भी लंबे समय तैनात थे। इसके अलावा जेल कर्मियों की तो कोई गिनती ही नहीं कि कौन कितने समय से एक जगह जमा है। दरअसल, एक जगह रहते-रहते कारागार अधिकारी-कर्मचारी जेल में बंद अपराधियों से इतना घुलमिल जाते हैं कि नामुमकिन काम भी मुमकिन होने लगते हैं, जैसा कि मानव स्वभाव होता है।
जेल में लालच ही नहीं, माफिया डाॅन का डर भी कर रहा है काम
हम यह नहीं कह रहे कि सभी अधिकारी भ्रष्ट हैं। सभी लालच में अपनी ड्यूटी भूल जाते हैं, बल्कि जेल अधिकारियों-कर्मचारियों पर माफियाओं का एक डर भी काम करता है।
कहा जाता है कि पू्र्व में यूपी की जेलों में अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर हुए जानलेवा हमले और हत्याओं के मामले में अद्यतन किसी भी लिप्त माफिया बंदी के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई पुष्टित नहीं हुई है। इस कारण कारागार के अधिकारी और कर्मचारियों व उनके परिवारों में माफिया डान बंदियों का आतंक रहता है। यह एक बहुत बड़ी वजह है कि वे न चाहते हुए भी नियम विरुद्ध कार्य रोकने में खुद को सक्षम नहीं पाते।
बांदा जेल अतिसंवेदनशील, शासन से लेकर माफियाओं तक की नजर
बांदा जिला कारागार बांदा उत्तर प्रदेश की अति संवेदनशील जेलों में एक है। यही वजह है कि बांदा जेल पर शासन की खास नजर रहती है। यहां तक कि माफियाओं की भी नजर भी रहती है। ऐसे में अगर शासन अतिसंवेदनशील जेलों पर तैनात अधिकारियों-कर्मचारियों का अधिकतम छह से सात माह में दूसरी जेलों में तबादला करना सुनिश्चित कर दे तो इन हालातों से निपटा जकता है।
न माफियाओं की जड़े जमेंगी और न ही उनकी दहशत फैलेगी। साथ ही जेल के अधिकारी-कर्मचारी भी कम समय की तैनाती में अपने कर्तव्य का पालन करने में पूरी मेहनत से काम करेंगे। तभी चित्रकूट जेल जैसी घटनाओं पर विराम लगेगा।
तीन जेल अधीक्षक तबादले के बावजूद आए नहीं, लंबी छुट्टी पर निकले
कारागार के तबादले की बात की जाएगी तो यह भी जगजाहिर है कि माफियाओं की जेल में ज्यादातर अधिकारी-कर्मचारी तबादला नहीं चाहते। पश्चिमी यूपी की जेलों में तैनात अधिकारी-कर्मचारी पूर्वांचल की कारागारों में तबादले से बचते हैं।
शासन भी पश्चिम की जेलों के अधिकारियों-कर्मचारियों को पूर्वांचल में तैनाती देने में सक्षम नहीं हो पाया है। ऐसा ही एक बड़ा उदाहरण बांदा जेल भी है। जहां तीन जेल अधीक्षक तबादले के बाद भी नहीं ज्वाइन करने नहीं आए। बल्कि लंबी छुट्टी पर चले गए। इनमें विजय विक्रम सिंह, पीपी सिंह आदि के नाम शामिल हैं।
दागी जेलकर्मियों की छटनी नहीं, बागपत का जगमोहन-चित्रकूट में भी
सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि जगमोहन नाम का एक जेल वार्डर जो बागपत जेल में हुए मुन्ना बजरंगी हत्याकांड के समय वहां तैनात था, वही चित्रकूट जेल में तैनात मिला।
इस जेल वार्डर के खिलाफ भी मुकदमा हुआ है। इससे साफ है कि शासनस्तर पर ऐसे संदिग्ध जेलकर्मियों को चिह्नित करके उनकी छटनी नहीं की जाती है।
ADG जेल प्रयागराज शैलेंद्र कुमार मैत्रेय बोले..
प्रयागराज के एडीजी जेल शैलेंद्र कुमार मैत्रेय से इस संबंध में बाद की गई। उन्होंने कहा कि जेल में हर चौकसी बरती जा रही है। जहां तक बांदा जेल की बात है तो वहां एक डिप्टी जेलर और 10-12 सिपाहियों की कुछ दिन में बदलकर ड्यूटी लगाई जा रही है। वहीं बांदा जेल अधिकारियों की लंबे समय से तैनाती के संबंध में एडीजी श्री मैत्रेय ने कहा कि इस विषय पर भी काम होगा। उन्होंने माना कि कहीं न कहीं जेल में बंद माफियाओं का डर भी काम करता है।
बांदा जेल में बंद टाॅप-10 अपराधी
- मुख्तार अंसारी पुत्र शुभानउल्ला अंसारी, दर्जी टोला यूसुफपुर, थाना मोहम्मदाबाद, गाजीपुर।
- पूर्व विधायक विजय सिंह पुत्र प्रेम सिंह, एनएकेपी इंटर कालेज, नाला मछरट्टा, फर्रुखाबाद।
- शिशुपाल पुत्र भगवानदास, ग्राम मैरी, थाना नवाबाद, झांसी।
- शैलेंद्र सिंह उर्फ बउवा पुत्र जयपाल सिंह, रामनगर, नयागांव, सतना (एमपी)।
- प्रदीप पासी पुत्र पूरनलाल पासी, बड़ा बघाड़ा, कर्नलगंज, इलाहाबाद।
- अकरम पुत्र रहीम, पोंगहट पुल, धूमनगंज, प्रयागराज।
- राजेंद्र सिंह रावत उर्फ विक्र सिंह उर्फ डाक्टर उर्फ हेमंत सिंह पुत्र जमन सिंह उर्फ जय सिंह, चौनिया पट्टी तल्ला, मतरौजखान, अल्मोड़ा, उत्तराखंड।
- आमिर पुत्र रफीक शेख, आदमजी डीवान चाल, शेवरी क्रास रोड, मुंबई महाराष्ट्र।
- मोहित उर्फ शनि ठाकुर पुत्र शिव सिंह, पंकजनाला, कालूकुआं, कोतवाली नगर, बांदा।
- – स्वामीदीन पुत्र घनश्याम अहिरवार, मंडरा, श्रीनगर, महोबा।
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