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लोकसभा बदायूंः दो बार हार के बावजूद बीजेपी का फिर संघमित्रा पर दांव…

बदायूं रेलवे स्टेशन।

समरनीति न्यूज, पॉलिटिकल डेस्कः पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बदायूं लोकसभा क्षेत्र समाजवादी पार्टी का गढ़ है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव अभी यहां से सांसद हैं। वह लगातार दो बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं। पिछले 6 लोकसभा चुनाव से समाजवादी पार्टी इस सीट पर अजेय है। इस बार बीजेपी ने यहां से धर्मेंद्र यादव को चुनौती पेश करने के लिए संघमित्रा मौर्य को मैदान में उतारा है। संघमित्रा, धर्मेंद्र यादव को कितना टक्कर दे पायेंगी यह चुनाव बाद पता चलेगा लेकिन सपा के गढ़ में बीजेपी के लिए चुनौती पेश कर आसान नहीं होगा क्योंकि बसपा का भी साथ सपा के साथ है। बदायूं में 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था।

1952 में हुआ था पहला लोकसभा चुनाव 

शुरुआती दौर में कांग्रेस का मिला जुला असर था। 1996 से समाजवादी पार्टी ने यहां पहली बार चुनाव जीता। इसके बाद से यहां सपा का एक छत्र राज है। 2009 में इस सीट पर सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। पिछले चुनाव में भी मोदी लहर के बावजूद उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी को आसानी से मात दिया था। बदायूं में बीजेपी ने सिर्फ एक बार
जीत का स्वाद चखा है। 1991 में स्वामी चिन्मयानंद ने यहां जीत दर्ज की थी।

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पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने यहां एक तरफा जीत हासिल की, उन्हें करीब 48 फीसदी वोट मिले थे। 2014 में मोदी लहर
के भरोसे चुनाव में उतरी बीजेपी का जादू यहां नहीं चला और उनके उम्मीदवार को सिर्फ 32 फीसदी ही वोट मिले थे। 2014 के चुनाव में इस सीट पर कुल 58 फीसदी मतदान हुआ था, जिसमें से करीब 6200 वोट नोटा में गए थे।

कौन हैं संघमित्रा मौर्य, आप भी जानिए 

संघमित्रा मौर्य भाजपा के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं, जो कि पूर्व में बसपा के बड़े नेता रह चुके हैं। संघमित्रा मौर्य बसपा के टिकट पर 2014 लोकसभा चुनाव में मैनपुरी सीट से सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के सामने मैदान में थी। मैनपुरी में एक रैली के दौरान संघमित्रा ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह के खिलाफ बोला था। उन्होंने ‘मुलायम सिंह भैंस चराओ’ एवं आने वाले लोकसभा चुनाव के बाद ‘मुलायम सिंह यादव को भैंस चराने लायक
बना दूंगीÓ, जैसे आपत्तिजनक, जातिगत शब्दों का उच्चारण किया था।

बीजेपी नेता संघमित्रा मौर्या।

इसके अलावा 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी वो एटा जिले की अलीगंज विधानसभा सीट से सपा के खिलाफ बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं थी। हालांकि इन दोनों ही चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। दरअसल, बीजेपी की स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में शामिल करने के पीछे की मंशा ओबीसी वोटर है। स्वामी प्रसाद के भरोसे बीजेपी ओबीसी वोटरों को अपने पाले में लाना चाह रही है। मौर्य जिस जाति से ताल्लुक रखते हैं वो यादव और कुर्मियों के बाद यूपी का तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह है। ये गैरयादव ओबीसी पूरे प्रदेश में पसरे हुए हैं और काछी, मौर्य, कुशवाहा, सैनी और शाक्य के उपनामों से जाने जाते हैं। बसपा स्वामी प्रसाद के जरिये इन्हीं लोगों को आकर्षित करती थी, यही काम अब बीजेपी करना चाहती है।

बदायूं लोकसभा सीट का जातीय समीकरण 

बदायूं लोकसभा सीट में यादव और मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व है। यहां दोनों ही मतदाता करीब 15-15 फीसदी हैं। 2014 के आंकड़ों के अनुसार यहां
करीब 18 लाख मतदाता हैं, इसमें 9.7 लाख पुरुष और 7.9 लाख महिला मतदाता हैं। बदायूं लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें
गुन्नौर, बिसौली, सहसवान, बिल्सी और बदायूं शामिल हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में इसमें से सिर्फ सहसवान सीट पर ही समाजवादी पार्टी जीत
पाई थी, जबकि बाकी सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने बाजी मारी थी।

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