मनोज सिंह शुमाली, ब्यूरो : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले हर दिन राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। सबसे ज्यादा चर्चा में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओपी राजभर हैं। एक टीवी चैनल से बातचीत में राजभर ने बड़ा बयान देकर राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है। राजभर ने कहा है कि सभी नेता ‘दो मुंहे सांप होते हैं, समय आने पर वह फिर सही निर्णय लेंगे..।’
दशहरा तक मंत्री में शामिल होने की थी चर्चा, हुआ कुछ नहीं
दरअसल, राजभर और दारा सिंह चौहान को दशहरा तक मंत्रीमंडल में शामिल करने की चर्चा थी। माना जा रहा था कि विजयदशमी तक राजभर को यूपी मंत्रीमंडल में मंत्री बनाकर शामिल किया जा सकता है। खुद राजभर ने भी बातों-बात में इस ओर इशारा किया था, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
अयोध्या दीपोत्सव में केशव मौर्या के न पहुंचने पर कही यह बात..
अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि ओपी राजभर दोबारा पलटी मारकर इंडिया गठबंधन से जुड़ सकते हैं। चर्चा है कि वह मंत्री न बनाए जाने पर नई रणनीति बना रहे हैं। इस इंटरव्यू में राजभर ने कहा कि सही समय आने पर निर्णय लेंगे। इतना ही नहीं अयोध्या में रिकार्ड दीपोत्सव के मौके पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के मौजूद न रहने पर भी राजभर ने बड़ी बात कही।
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उन्होंने कहा कि मौर्या बड़े नेता हैं। वही बता सकते हैं कि उनकी ड्यूटी कहां रही या वह क्यों नहीं शामिल हुए। स्वामी प्रसाद के मां लक्ष्मी पर दिए विवादित बयान पर ओपी राजभर ने कहा कि वह संविधान को नहीं मानते हैं। कहा कि संविधान में बाबा साहेब ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दी कि दूसरे धर्म की आलोचना हो। बाबा साहेब ने ऐसी व्यवस्था दी है कि अपने-अपने धर्मों का पालन करें।
कहा कि सत्ता से हटते ही पार्टियों को आती है पिछड़ों की याद
कहा कि स्वामी प्रसाद दूसरे धर्म पर क्यों बयान दे रहे हैं। स्वामी प्रसाद भाजपा के साथ गए। कहा कि स्वामी प्रसाद का काम था राम-राम जपना पिछड़ों का हक लुटवाना।
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कहा कि सत्ता से बाहर आने के बाद सभी राजनीतिक पार्टियों को पिछड़ों की बात याद आती है। दरअसल, राजभर इस समय बीजेपी के साथ हैं। कुछ महीने पहले वह भाजपा के साथ आने का ऐलान किया था। इतना ही नहीं दारा सिंह चौहान भी सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद घोसी उप चुनाव में दारा हार गए।
घोसी उप चुनाव में दारा सिंह चौहान की हार ने बदले हालात
इस चुनाव में ओपी राजभर का भी एक तरह से शक्ति परीक्षण था, लेकिन दारा की हार ने दोनों नेताओं के जनाधार पर सवाल खड़ा करने का काम किया। शुरू से चर्चा यह थी कि दोनों को मंत्री मंडल में शामिल किया जाएगा।
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