समरनीति न्यूज, बांदा : अफसोस की बात है कि कुछ मठाधीशों के चलते बांदा का ऐतिहासिक हार्पर क्लब अपनी प्रतिष्ठा खो रहा है। कुछ लोग इस सरकारी भवन को बपौती मान बैठे हैं। हार्पर क्लब में लगातार नियम विरुद्ध काम सामने आ रहे हैं, जो इसकी गरिमा को प्रभावित कर रहे हैं। सोचिए 8 साल से हार्पर क्लब में एजीएम की मीटिंग नहीं कराई गई। सचिव पद का चुनाव 4-5 साल बाद कराया गया। यह मनमानी नहीं तो क्या है? अब इसी सरकारी हार्पर क्लब की बिल्डिंग के बड़े हिस्से में अवैध रूप से किराय पर जिम चलवाने का मामला सामने आया है।
AGM मीटिंग, सचिव चुनाव से लेकर अवैध किरायदारी तक मनमानी
सरकारी भवन को बिना टेंडर किराय पर किसने दिया, कौन लोग हैं जो वर्षों से जिम का किराया अपनी जेबों में रख रहे हैं? ऐसे तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि जिम की आड़ में एक बड़ी घोटालेबाजी कई साल से चल है। यह सबकुछ प्रशासन को गुमराह कर किया जा रहा है।
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बताते चलें कि कोरोना लाॅक डाउन के बीच क्लब को जुआ का अड्डा बनाने वाले लोगों पर तत्कालीन डीएम अमित बंसल और पदेन सचिव सुरेंद्र सिंह ने तब कड़ी कार्रवाई की थी। तब पुलिस ने छापा मारकर इसी क्लब परिसर में जुआरियों को पकड़ा था। छापेमारी में कई लोग दीवार कूदकर भागे थे। एक-दो के हाथ-पैर भी टूट गए थे। प्रशासन ने सख्त एक्शन लिया था। कई सदस्यों की सदस्यता खत्म कर दी थी, लेकिन अब फिर वही हालात बनते दिखाई दे रहे हैं।
तत्कालीन जिलाधिकारी ने की थी जुआ पकड़ने पर सख्त कार्रवाई
चर्चा है कि अधिकारियों के तबादलों के बाद प्रशासन को गुमराह कर मनमानी शुरू कर दी गई है। सचिव का चुनाव 4-5 साल बाद कराया गया। जबकि हर साल होना चाहिए। एजीएम की मीटिंग पिछले 7-8 साल से नहीं कराई गई है। अब नई बात सामने आ रही है। हार्पर क्लब एक सरकारी भवन है, जो सरकारी संस्था के तहत काम कर रहा है।
सरकारी संस्था हार्पर क्लब पर मठाधीश किस्म के लोगों का बोलबाला
इसकी अध्यक्ष खुद जिलाधिकारी हैं। इसके बावजूद प्रशासन को गुमराह कर क्लब भवन का एक बड़ा हिस्सा जिम को किराय पर दे दिया गया है। सरकारी भवन को किराय पर देने की एक प्रक्रिया होती है। कुछ नियम होते हैं। सबकी धज्जियां उड़ाते हुए मठाधीशों ने भरपूर मनमानी की।
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क्लब से जुड़े सूत्रों का कहना है कि किराया ज्यादा लेकर सदस्यों को भी कम कर दिखाया जाता है। साथ ही उसे भी सरकारी खाते में जमा नहीं किया जाता है। अबतक लाखों रुपए का इस तरह घोटाला हो चुका है। बताते हैं कि 2017 से यह जिम बिना टेंडर सरकारी भवन में किरायेदारी में चल रहा है।
मामले की गहराई से जांच हो जाए तो कई लोगों को जाना पड़ सकता जेल
अब सवाल उठता है कि अबतक किराया किसकी जेब में गया। उसे अध्यक्ष/जिलाधिकारी के सरकारी खाते में क्यों नहीं जमा कराया गया? यह गबन नहीं तो क्या है? क्लब के ही कुछ सदस्यों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अगर प्रशासन
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एक समिति बनाकर पूरे मामले की गहराई से जांच करा ले तो हार्पर क्लब के मठाधीशों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज हो सकती है। इतना ही नहीं कुछ को तो जेल भी जाना पड़ सकता है। सूत्रों का कहना है कि खुद क्लब के कई सदस्य भी मानते हैं कुछ लोग मनमानी करते हैं।
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