मनोज सिंह शुमाली, पॅालिटिकल डेस्कः हमीरपुर जिला चित्रकूटधाम बांदा मंडल का हिस्सा है। यह जिला बुन्देलखंड के अंतर्गत आता है। यह 4,121 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। हमीरपुर वर्तमान में यूपी का 34वां जिला है, जिसे पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के तहत फंड मिलता है। जिले का मुख्यालय हमीरपुर है। यह शहर यमुना तथा बेतवा नदियों के संगम पर बसा है। यह कानपुर के दक्षिण में लगभग 68 किमी की दूरी पर स्थित है। इस जिले में 4 तहसीलें हमीरपुर, मौदहा, राठ और सरीला हैं।
यहां की आबादी/शिक्षा की स्थिति
हमीरपुर की आबादी का 91.46 प्रतिशत हिस्सा हिन्दू धर्म जबकि 8.26 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिम धर्म में आस्था रखता है। हमीरपुर निर्वाचन क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया था, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय में भी इस जगह भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, हमीरपुर में प्रति 1000 पुरुषों पर 876 महिलाएं हैं। हमीरपुर की साक्षरता दर 68.77 प्रतिशत है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 79.76 प्रतिशत और महिलाओं की साक्षरता दर 55.95 प्रतिशत है।
शुरू से अबतक राजनीतिक घटनाक्रम
उत्तर प्रदेश की हमीरपुर लोकसभा पर इस वक्त भाजपा का कब्जा है, साल 2014 में यहां पर बीजेपी के कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने सपा के बिशंभर प्रसाद निषाद को 2,66,788 वोटों से हराकर ये सीट अपने नाम की थी। इस लोकसभा क्षेत्र में यूपी की पांच विधानसभा सीटें आती है जिसमें हमीरपुर, राठ, महोबा, चरखारी और तिंदवारी शामिल है। इसमें राठ विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 1952 से लेकर 1971 तक इस सीट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दबदबा रहा।
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1977 में अपनी छठी जीत तालाश रही कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी भारतीय लोकदल के तेज प्रताप ने जीत दर्ज करके फेरा। 1980 और 1984 में यहां कांग्रेस ही जीती लेकिन 1989 में जनता दल के प्रत्याशी ने इस सीट पर कब्जा जमाया । 1991 में विश्वनाथ शर्मा ने भारतीय जनता पार्टी को हमीरपुर में पहली जीत दिलाई इसके बाद बीजेपी ने यहां लगातार तीन बार जीत दर्ज की और 1998 तक यह सीट उसके ही पास रही। 1999 में सपा प्रत्याशी अशोक चंदेल ने यहां कब्जा किया तो वहीं 2004 में यहां की जनता ने सपा प्रत्याशी को चुना।
2014 में भाजपा के कब्जे में आई सीट
2009 में यह सीट वापस बसपा के पास आ गई, लेकिन साल 2014 में इस सीट पर भाजपा ने कब्जा कर लिया और कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल एमपी बने। चंदेल वित्त सम्बन्धी मामलों की स्थाई समिति के सदस्य भी हैं। मौजूदा लोकसभा में जहां उपस्थिति का राष्ट्रीय औसत 80 प्रतिशत है तो वहीं कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल की सदन में उपस्थिति 97 प्रतिशत है। इन्होंने अबतक 465 प्रश्न पूछे हैं और 1835 चर्चाओं में हिस्सा लिया है। पुष्पेन्द्र चंदेल ने अब तक 23 निजी सदस्य बिल पेश किए हैं। साल 2014 के चुनावों में यहां सपा दूसरे, बसपा तीसरे और कांग्रेस चौथे नंबर पर रही थी।
लोकसभा वर्ष और पार्टी नाम
- पहली 1952 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मनुलाल द्विवेदी
- दूसरी 1957 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मनुलाल द्विवेदी
- तीसरी 1962 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मनुलाल द्विवेदी
- चौथी 1967 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वामी ब्रह्मानंद
- पांचवीं 1971 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वामी ब्रह्मानंद
- छठीं 1977 भारतीय लोकदल तेज प्रताप सिंह
- सातवीं 1980 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(आई) डूंगर सिंह
- आठवीं 1984 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वामी प्रसाद सिंह
- नौवीं 1989 जनता दल गंगा चरण राजपूत
- दसवीं 1991 भारतीय जनता पार्टी विश्वनाथ शर्मा
- ग्यारहवीं 1996 भारतीय जनता पार्टी गंगा चरण राजपूत
- बारहवीं 1998 भारतीय जनता पार्टी गंगा चरण राजपूत
- तेरहवीं 1999 बहुजन समाज पार्टी अशोक कुमार सिंह चंदेल
- चौदहवीं 2004 समाजवादी पार्टी राज नारायण बुधोलिया
- पंद्रहवीं 2009 बहुजन समाज पाटी बहुजन समाज पार्टी
- सोलहवीं 2014 भारतीय जनता पार्टी कुंवर पुष्पेंद्र सिंह
बुंदेलखंड का नक्शा।
जानिए बुंदेलखंड के बारे में खास बातें
बुंदेलखंड भारत के मध्य का भाग है, जो उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में पड़ता है। इसका विस्तृत इतिहास है। उत्तर प्रदेश के सात जिलों चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर का भू-भाग बुंदेलखंड कहलाता है। लगभग 29 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके में कुल 24 तहसीलें, 47 ब्लाक और जनसंख्या लगभग एक करोड़ है। हालांकि राजनीतिक स्तर पर जिस पृथक राज्य की परिकल्पना है उसमें तेइस जिले हैं। इनमें मप्र के भिंड, मुरैना, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, नरसिंहपुर, सागर, दमोह, ग्वालियर, दतिया, जबलपुर, टीकमगढ़, भिंड, छतरपुर, पन्ना और सतना भी शामिल हैं।
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बुंदेलखंड चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शायद इसीलिए चुनाव करीब आते ही यहां राजनीतिक दलों की आवाजाही बढ़ जाती है। इस क्षेत्र के साथ सबसे बड़ी विडंबना है कि यहां नेता विकास के सिर्फ बढ़-चढ़कर वादे करते है। वादे कभी धरातल पर साकार नहीं होते। शायद इसीलिए यह क्षेत्र तमाम समस्याओं से जूझ रहा है। सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड में जितना परेशान किसान है उतना ही अन्य लोग। फिलहाल हम आपको बुंदेलखंड की राजनीति बताने जा रहे है कि कौन सी पार्टी का यहां कितने साल कब्जा रहा है। बुंदेलखंड में चार लोकसभा क्षेत्र आता है। बांदा, जालौन, हमीरपुर और झांसी लोकसभा सीट का चुनाव हमेशा रोचक रहा है।
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