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बुंदेली सियासतः बांदा में तीनों बड़े दलों का दल-बदलुओं पर दांव, कुछ ऐसे बन रहे समीकरण..

बांदा लोकसभा सीट से भाजपा, कांग्रेस और गठबंधन के प्रत्याशी। आरके सिंह पटेल (बीच में) श्यामाचरण गुप्ता (दाएं) और बालकुमार पटेल (बाएं)

मनोज सिंह शुमाली, पॉलिटिकल डेस्कः यह कोरा इत्तेफाक नहीं है बल्कि वोटों के जातीय समीकरण के सहारे जीत की नैय्या पार लगाने की कवायद है कि तीनों बड़े दलों ने बाहर से आए दल-बदलुओं पर दांव खेला है। फिर चाहे कांग्रेस हो, भाजपा हो, या फिर सपा-बसपा गठबंधन। एक और खास बात यह है कि बांदा लोकसभा सीटों से जिन तीन प्रत्याशियों को उतारा गया है वे तीनों कभी न कभी सपा के पूर्व सांसद रहे हैं। श्यामाचरण गुप्त और आरके सिंह पटेल बांदा-चित्रकूट संसदीय सीट से सपा सांसद रह चुके हैं तो बालकुमार पटेल मिर्जापुर सीट से सपा सांसद रह चुके हैं। ऐसे में तीनों ही दलों में कहीं न कहीं ”बाहरी और घर का”, वाला फेक्टर काम करेगा।

श्यामाचरण ने फिर लौटकर नहीं देखा, अब क्या जनता..

थोड़ा विस्तार से बात करें तो सपा-गठबंधन के उम्मीदवार श्यामाचरण गुप्त हैं। उनकी पहचान राजनेता कम और व्यवसाई के रूप में ज्यादा है। चर्चा है कि श्यामाचरण राजनीति को व्यवसाय की तरह लेकर चलते हैं। समय और सुविधा के हिसाब से पार्टी बदल लेते हैं। श्यामाचरण 2004 में बांदा-चित्रकूट संसदीय सीट से सपा के सांसद रहे हैं। फिर 2014 में भाजपा में चले गए और मोदी लहर में इलाहाबाद से चुनाव जीत भी गए। अब भाजपा से टिकट कटने की आशंका को देखते हुए फिर पाला बदलकर सपा में पहुंच गए। खुद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उनको बांदा-चित्रकूट लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। एक पुराने भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि श्यामाचरण ने बांदा से चुनाव हारने के बाद दोबारा यहां का रुख नहीं किया। इसलिए उनको इस चुनाव में लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

आरके सिंह पटेल बदलते रहे हैं राजनीतिक पाले  

जिन आरके सिंह पटेल को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाकर बांदा से मैदान में उतारा है, वह दल बदलने को लेकर काफी चर्चित रहे हैं। बसपा-सपा-बसपा-भाजपा, कुछ ऐसी राजनीतिक यात्रा करने वाले आरके सिंह पटेल 2009 में बांदा-चित्रकूट लोकसभा सीट से सपा के सांसद रह चुके हैं। आरके सिंह ने पांच साल बाद बसपा का दामन थाम लिया था और फिर 2014 में लोकसभा चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ा। हांलाकि भाजपा प्रत्याशी भैरो प्रसाद मिश्र से वह हार गए। अब भाजपा ने बैकवर्ड कार्ड खेलते हुए कई कद्दावर नेताओं को किनारे करते हुए आरके सिंह पटेल को मैदान में उतारा है।

बाल कुमार ने भी सपा से टिकट नहीं तो कांग्रेस पकड़ी 

इसी तरह कांग्रेस प्रत्याशी बाल कुमार पटेल भी मिर्जापुर से सपा सांसद रहे हैं। अब कांग्रेस ने अपने अन्य टिकट के दावेदारों को किनारे कर बालकुमार पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया है।  2009 के लोकसभा चुनाव में बालकुमार मिर्जापुर सीट से सपा के टिकट पर लड़े और चुनाव जीत चुके हैं। 2014 में सपा के टिकट पर ही बांदा-चित्रकूट सीट से लड़े और तीसरे नंबर पर रहे। बताया जाता है कि इस बार फिर सपा से टिकट की चाह थी लेकिन टिकट नहीं मिला। इस बात से बागी हो गए और कांग्रेस का दामन थाम लिया और कांग्रेस के उम्मीदवार बन गए हैं।

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बाहरियों पर भरोसा, अपने कर दिए दरकिनार 

तीनों ही दलों ने जिस तरह बाहरी लोगों को टिकट दिया है, उससे साफ है कि कहीं न कहीं इन दलों में भीतरखाने में वर्षों से पार्टी के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं में संतोष तो नहीं होगा। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि तीनों ही दलों के कई बड़े नेता वर्षों से क्षेत्र में काम कर रहे थे और टिकट को लेकर दावेदारी भी ठोक रहे थे। ऐसे में उन सभी को किनारे करके इन दलों ने जिस तरह से बाहर से आने वालों को टिकट थमा दिए हैं, उसे लेकर इतना तो साफ है कि बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं और नेताओं का असंतोष असर दिखा सकता है।

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भले ही खुलकर कोई कुछ न कहे, लेकिन चुनाव के नतीजों में इसकी झलक दिखाई देगी, इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है। भाजपा के मौजूदा सांसद भैरो प्रसाद मिश्रा ने तो वाकयदा टिकट कटने को लेकर दिल्ली में बीजेपी दफ्तर में धरना देकर इस नाराजगी को जगजाहिर भी कर दिया है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दबी जुबान इस बात को स्वीकार भी किया है कि भैरो की नाराजगी आने वाले चुनावों में कहीं न कहीं पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।