जान लेता ही नहीं, कभी-कभी बचाता भी है “शक” – नाटक शक
समरनीति न्यूज, कानपुरः ‘हम सिर्फ ये एक्टिंग इसलिए कर रहे थे कि मैं तुम्हारे खोये हुए प्यार को दोबारा हांसिल कर सकूं और तुम पहले की तरह एकदम सही हो जाओ। देखों तुम्हारा शक ही हमारे प्रेम की ताकत बन गया।’ अपने प्रेम की परख का एहसास कराते इन ये भावनात्मक शब्द हिस्सा हैं नाटक ‘शक’ का। जिसका मंचन बीती देर शाम राघवेंद्र स्वरूप आडिटोरियम में किया गया।
इस नाटक की खास बात यह है कि इसमें सिर्फ चार केंद्रीय पात्रों ने अपने अभियन से दर्शकों को बांधे रखा। नाटक की थीम में दिखाया गया कि एक हादसे में पति अपाहिज हो जाता है और धीरे-धीरे महसूस करने लगता है कि उसकी पत्नी का झुकाव उसके करीबी दोस्त की ओर हो रहा है।
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वह दोनों पर शक करने लगता है। एक दिन वह दोनों को एक साथ पकड़ लेता है। लेकिन बाद में पता चलता...