मनोज सिंह शुमाली, ब्यूरो (लखनऊ) : Loksabha Election 2024 कभी बसपा के कद्दावर नेता रहे बाबू सिंह कुशवाहा जौनपुर से चुनावी ताल ठोक रहे हैं। बसपा के पूर्व मंत्री अबकी बार सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं। इससे पहले भाजपा के भी प्यारे रहे रहे। 2012 में दिल्ली में पूर्व मंत्री कुशवाहा ने भाजपा ज्वाइन की। लेकिन दोनों की मजबूरियां रहीं और एक-दूसरे का साथ छोड़ना पड़ा। आखिरकार कुशवाहा ने ‘जन अधिकारी पार्टी’ नाम से अपना राजनीतिक दल बना लिया। हालांकि, कुशवाहा को कभी राजनीतिक रूप से स्थायित्व नहीं मिला। अब उनकी अपनी पार्टी भी आस्तित्व भी खतरे में है। क्यों कि वह सपा के टिकट पर, सपा के निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं। बुंदेलखंड में चर्चा है कि लगभग सभी दलों के प्यारे रहे कुशवाहा, खुद अपने घर बांदा से दूर क्यों हैं? बांदा से चुनावी मैदान में क्यों नहीं उतरते?
आइये बाबू सिंह कुशवाहा के राजनीतिक सफर पर डालते हैं एक नजर :
- बांदा जिले के बबेरू तहसील के पखरौली गांव में एक कृषक परिवार से जुड़े कुशवाहा ने अतर्रा में लकड़ी टाल से जीवनयापन शुरू किया था।
- बताते हैं कि वर्ष 1985 में स्नातक उत्तीर्ण करने वाले कुशवाहा अप्रैल 1988 को बसपा संस्थापक कांशीराम के संपर्क में आए थे।
- कांशीराम ने उन्हें दिल्ली बुलाया और बसपा कार्यालय का कर्मचारी बनाया।
- कहते हैं कि दिल्ली बसपा कार्यालय में 6 माह पूरे होने से पहले ही उन्हें प्रोन्नत कर लखनऊ कार्यालय में संगठन की जिम्मेदारी सौंप दी गई।
- फिर 1993 में सपा-बसपा के गठबंधन के बीच कुशवाहा को बांदा का जिलाध्यक्ष घोषित कर दिया गया।
- बताते हैं कि मायावती ने उनको पार्टी दफ्तर में टेलीफोन ऑपरेटर की जिम्मेदारी भी सौंपी थी। यह जिम्मेदारी वाला काम था।
- फिर 1997 में उनको विधान परिषद सदस्य बनाकर बसपा मुखिया ने इनाम दिया।
- इस बीच मायावती का विश्वास जीत चुके कुशवाहा 2003 में तीसरी बार बनी बसपा सरकार में पंचायती राज मंत्री बना दिए गए।
- 2007 में बसपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई। फिर कुशवाहा को खनिज, नियुक्ति, सहकारिता जैसे बेहद अहम विभागों का मंत्री बनाया गया।
- फिर परिवार कल्याण विभाग बना तो बाबू सिंह को यह विभाग भी दे दिया। मायावती का कुशवाहा पर काफी भरोसा रहा।
राजनीति के फर्श से अर्श तक, लेकिन NRHM..
तो इस तरह पूर्व मंत्री कुशवाहा ने जमीन से राजनीतिक में फर्श से अर्श तक का सफर तय किया। लेकिन राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NHRM) घोटाले ने पूरे प्रदेश की राजनीतिक को हिलाकर रख दिया। इसके आरोप पूर्व मंत्री कुशवाहा पर भी लगे। मामले ने काफी तूल पकड़ा और एनआरएचएम का यह हजारों करोड़ का घोटाला खुद में इतिहास बन गया।
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पढ़िए ! क्या था NRHM घोटाला..
केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में एनआरएचएम के तहत 10 हजार करोड़ दिए थे। इस ग्रांट से यूपी के ग्रामीण इलाकों में 133 अस्पतालों के विकास और आरओ लगाने तथा दवाओं की आपूर्ति का काम होना था, लेकिन इसमें बड़ा बंदरबांट हुआ। पांच हजार करोड़ से ज्यादा का गोलमाल किया गया। मामले की सीबीआई जांच शुरू हुई। सीबीआई ने 2012 में कुशवाहा और अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
2012 में बीजेपी की पकड़ी थी बांह
इतना कुछ होने के बाद जनवरी 2012 में कुशवाहा ने बीजेपी की बांह पकड़ी। हालांकि, दोनों को राजनीतिक मजबूरियों के चलते जल्द ही अलग होना पड़ा। इसके बाद बाबू सिंह कुशवाहा की समाजवादी पार्टी से नजदीकी बढ़ी। पूर्व मंत्री कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा को सपा ने 2013 में गाजीपुर से चुनाव लड़ाया। शिवकन्या भले ही चुनाव न जीत पाई हों, लेकिन उन्हें रिकार्ड वोट मिले। फिर वो सपा से भी अलग हो गए।
औवैशी का भी साथ कर चुके कुशवाहा
इसके बाद कुशवाहा ने औवैशी की पार्टी से गठबंधन करते हुए चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। अब कुशवाहा सपा के टिकट पर सपा के झंडे तले जौनपुर से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके गृह जनपद बांदा में उनकी पार्टी को लेकर अजीब सा सन्नाटा पसरा है। उनकी पार्टी कार्यालय पर धूल जमी है, पार्टी का कोई नाम सुनाई नहीं दे रहा है। ऐसे में लोगों में चर्चा है कि सभी दलों के प्यारे रहे बाबू सिंह अपने ही घर बांदा से क्यों दूर हैं? बांदा से चुनाव क्यों नहीं लड़ते?
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