Wednesday, May 15सही समय पर सच्ची खबर...

विश्व जनसंख्या दिवस : शहर की बढ़ती आबादी निगल रही है मूलभूत सुविधाएं

समरनीति डेस्‍कः शहरों में तेजी से बढ़ती आबादी अब चिंता का सबब बनती जा रही है. ऐसे में बात करें कानपुर की तो पिछले 1 दशक में कानपुर की आबादी 2 गुनी से ज्यादा हो चुकी है. मौजूदा समय में कानपुर की आबादी 50 लाख के आंकड़े को भी पार कर चुकी है.

भटकना पड़ता है छोटी-छोटी जरूरतों के लिए 

जनसंख्या विस्फोट के चलते कानपुराइट्स अब मूलभूत सुविधाओं के लिए भी भटकने लगे हैं. सड़कों पर टै्रफिक का बोझ बढ़ता जा रहा है, हरियाली कम हो रही है और प्रदूषण बढ़ रहा है. कूड़े और गंदगी के ढेर में शहर तब्दील हो चुका है. हर दिन 500 नए वाहन सड़कों पर उतर रहे हैं. सरकारी हॉस्पिटल्स में मरीजों की संख्या इस कदर बढ़ गई है कि 11,000 की आबादी पर 1 डॉक्टर है, जबकि 1000 की आबादी पर 1 डॉक्टर होना चाहिए. सालाना बच्चों के पैदा होने की दर कुल आबादी का 11 परसेंट तक हो गई है.

प्रदूषण पर नहीं लग रहा है लगाम 

शहर में बढ़ती आबादी की वजह से सड़कों पर वाहनों का बोझ से लोग घंटों जाम में फंसते हैं. जिससे शहर में प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है. शहर में 50 हजार से ज्यादा ऐसे वाहन हैं जो अपनी लाइफ पूरी कर चुके हैं, फिर भी आरटीओ विभाग से जुगाड़ की दम पर सड़कों पर दौड़ रहे है. ये वाहन प्रदूषण के बड़े कारक हैं.

रोजाना निकलता है 1300 टन कूड़ा  

बढ़ती आबादी के बोझ से अब प्रतिदिन 1300 टन कूड़ा निकलता है, जबकि इसके निस्तारण कोई खास व्यवस्था नहीं है. शहर में पॉलिथीन वेस्ट के रूप में रोजाना लगभग 13 टन तक निकलती है, जो पर्यावरण के साथ आबादी को भी नुकसान पहुंचा रही है. इतना ही नहीं, करीब 2 लाख टन कूड़ा प्‍लांट में डंप पड़ा है. इसके अलावा 1300 टन कूड़ा रोजाना प्लांट में आता है.

अबतक काफी हुआ है नुकसान  

इसके अलावा शहरी क्षेत्र में लगातार वन क्षेत्र कम किया गया. बढ़ती आबादी से वन क्षेत्रों में नई-नई कॉलोनियां विकसित की गई. इससे हरित क्षेत्रों को काफी नुकसान पहुंचा है. अब हालात यह हैं कि शहरी क्षेत्र में सिर्फ 3 परसेंट ही वन क्षेत्र बचा है.