मनोज सिंह शुमाली, बांदा : बांदा में दो नगर पालिकाओं और 6 नगर पंचायतों में हुए निकाय चुनावों में 4 पर ही कमल खिल सका। इनमें सबसे ज्यादा चर्चित और कांटे के मुकाबला वाली बांदा नगर पालिका सीट रही। इस सीट पर सीएम योगी आदित्यनाथ के दौरे से बिल्कुल अंतिम समय में पार्टी की नैया पार लगी। स्थानीय वरिष्ठ नेताओं के लिए इस सीट को बचाना मुश्किल था। उनकी भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी। ऐसे में सीएम योगी संकटमोचन बनकर आए।
..तो हाथ से खिसक जाती बांदा नगर पालिका
अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव से ठीक पहले बांदा का दौरा न करते तो सदर की नगर पालिका भी पार्टी के हाथ से खिसक जाती। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि आखिरी समय में सीएम का आना ही संजीवनी दे गया। वरना विपक्षी से टक्कर काफी कांटे की थी। हालांकि, सीएम योगी के आने से स्थानीय नेताओं के लिए खतरे की घंटी भी बज गई है।
राज्य मंत्री के क्षेत्र में निर्दलीय से हारी पार्टी
पार्टी हाईकमान समझ रहा है कि अपने दम पर स्थानीय विधायक-सांसद निकाय चुनाव तक नहीं जीता सकते। बांदा में सीएम योगी के दौरे से आखिरी क्षणों में समीकरण बदले और नगर पालिका चुनाव जिताया। बाकी जिन चार सीटों पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा, उनमें से एक प्रदेश के जल शक्ति विभाग के राज्यमंत्री रामकेष निषाद के विधानसभा क्षेत्र की तिंदवारी नगर पंचायत है। वहां निर्दलीय प्रत्याशी ने पार्टी को पटखनी दे दी। बात साफ है कि राज्य मंत्री अपने ही क्षेत्र में नगर पंचायत नहीं जिता सके। हालांकि, इससे पहले इन्हीं राज्यमंत्री के क्षेत्र में पार्टी जिला पंचायत उप चुनाव हार गई थी।
नरैनी विधायक की भी जनता पर नहीं पकड़
इसी तरह नरैनी में भाजपा की महिला विधायक ओममणि वर्मा हैं। वहां भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। नरैनी नगर पंचायत में सपा ने जीत दर्ज कराई है। यहां भी बात साफ है कि नरैनी विधायक ओममणि की भी निकाय चुनाव में कोई पकड़ दिखाई नहीं दी।
ऐसे नेताओं को साइड लाइन कर सकती है पार्टी
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पार्टी के स्थानीय जनप्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्र की जनता पर कितनी पकड़ रखते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बुंदेलखंड में चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का। या फिर जिला पंचायत और निकाय का। बिना मोदी और योगी के सहारे यहां कमल नहीं खिलता। बहरहाल, इस बार के निकाय चुनाव ने ऐसे ही नेताओं के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। आने वाले चुनावों में ऐसे नेताओं को पार्टी साइड लाइन कर सकती है।
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