मनोज सिंह शुमाली, बांदा : बांदा के चुनावी चौपाल में चर्चा है कि सपा प्रत्याशी की कारगुजारी पार्टी को भारी पड़ सकती है। पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि स्थिति असहज करने वाली है। प्रत्याशी करीबी लोग प्रचार-प्रसार को रफ्तार नहीं दे रहे हैं। काफी हाथ खींचकर चल रहे हैं। खुद पार्टी के लोग दबी जुबान कह रहे हैं कि ऐसे में चुनाव प्रचार-प्रसार में लगीं गाड़ियों का खर्चा और कार्यकर्ताओं को लंच वगैरह की व्यवस्था मुश्किल हो रही है। वहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी दो दिन पहले बांदा आए थे। उनकी जनसभा के दिन भी स्थिति थोड़ी असहज करने वाली थी।
काफी पहले फाइनल हो चुका टिकट, फिर भी प्रचार में सुस्त
पार्टी के एक युवा नेता ने यह बात कही। पार्टी सूत्रों का कहना है कि सपा प्रत्याशी मौजूदा राजनीतिक हालात को समझ नहीं पा रहे हैं। पार्टी के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बस्ते लगाने के लिए भी राष्ट्रीय अध्यक्ष से बात करनी पड़ी है।
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बताते चलें कि समाजवादी पार्टी से पटेल समाज के कद्दावर नेता रहे शिवशंकर सिंह पटेल का टिकट काफी पहले ही फाइनल हो गया था, लेकिन उनकी बीमारी के कारण उनका टिकट कटने को लेकर चर्चाएं पहले ही दिन से शुरू हो गई थीं। तब पार्टी नेताओं यही समझते रहे कि टिकट कटने की आशंकाओं को लेकर सपा प्रत्याशी प्रचार-प्रसार से हाथ खींच रहे हैं। हालांकि, टिकट कटने की आशंकाएं सही निकलीं।
बी्मारी से पति का टिकट कटा, फिर भी पार्टी ने जताया भरोसा
पार्टी ने शिवशंकर पटेल की बीमारी को देखते हुए उनका टिकट काट दिया। लेकिन फिर भी उन्हीं पर भरोसा जताते हुए उनकी पत्नी कृष्णा पटेल को टिकट देकर उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि शिवशंकर राजनीति के मझे खिलाड़ी हैं। मंत्री भी रह चुके हैं, जातीय गठजोड़ भी उनके पक्ष में नजर आया। इसलिए सपा ने उनपर दांव लगाना ठीक समझा। लेकिन अब तंग हाथ वाली स्थिति पूरी चुनावी जंग को हल्का कर रही है।
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उन्हीं की पार्टी के एक जिलास्तरीय नेता का कहना है कि चुनाव में कुछ खर्चे जरूरी होते हैं। इनमें कार्यकर्ताओं के लंच पैकेट और प्रचार गाड़ियों की व्यवस्था सबसे अहम होती है, लेकिन हम प्रत्याशी यह समझाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।
इसलिए बांदा सीट पर अक्सर नुकसान उठाती है सपा
पार्टी सूत्रों का कहना है कि जिला संगठन के लोगों ने बस्ता लगवाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष से बात की। तब तय हुआ है कि पार्टी मुख्यालय से थोड़ी मदद की जाएगी। बहरहाल, बांदा की चुनावी लड़ाई में सपा की स्थिति कांटे की टक्कर वाली है। एक छोटी सी गलती भी पार्टी का नुकसान कर सकती है। यह बात समझनी चाहिए। बताते चलें कि बांदा की सीटों पर सपा प्रत्याशी विपक्षी दलों की रणनीति से कम और अपनी आंतरिक खींचतान और नासमझी से ज्यादा हारती रही है।
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