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बांदा BJP अध्यक्ष कौन? मंत्री-विधायकों के क्षेत्र में बुरी हार हारती भाजपा के लिए बड़ा सवाल!

Lok Sabha 2024 : Local BJP leaders

मनोज सिंह शुमाली, बांदा: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी में संगठन का चुनाव चल रहा है। सभी जिलों में नए जिलाध्यक्षों के मानक पूरे किए जा रहे हैं। लोकसभा में हार के बाद पार्टी बड़े पैमाने पर निष्क्रिय और सुस्त जिलाध्यक्षों को हटाने के मूड में है। इसलिए सतर्कता से आगे बढ़ रही है। ऐसे में बांदा जिले का जिक्र करना जरूरी है। बांदा में मंत्री और विधायकों के क्षेत्र में भी बीजेपी कई चुनावों में बुरी हार हारती आ रही है। इसलिए नया जिलाध्यक्ष कौन होगा? इसपर सभी की नजर टिकी है।

शहर में सभासद तक का चुनाव हार गई पार्टी

हाल यह है कि कुछ दिन पहले शहर में स्वराज कालोनी वार्ड का चुनाव तक पार्टी हार गई। इसमें चौंकाने वाली बात तो यह है कि यह वार्ड खुद नगर पालिकाध्यक्ष मालती बासु का है। इसी वार्ड में उनका आवास है। यह छोटी सी हार 2027 के चुनावों के लिए बड़ा संकेत दे रही है। हालांकि, यह कोई पहली हार नहीं है।

मंत्री के क्षेत्र में उपचुनाव में हार, निकाय में साफ

इससे पहले जलशक्ति राज्यमंत्री रामकेश निषाद की तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र में पार्टी को कई बार हार का मुंह देखना पड़ा। पार्टी जनप्रतिनिधियों के क्षेत्र में लगातार हार रही है। बात साफ है कि माननीय पार्टी को जीत नहीं दिला पा रहे। तिंदवारी में जसपुरा और नरैनी में जिपं उप चुनाव हों या तिंदवारी में निकाय चुनाव। पार्टी की हार ही हुई।

लोकसभा में बड़ी हार, ब्राह्मण वोटर खिसके

वहीं बांदा-चित्रकूट से लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी आरके सिंह पटेल को सपा की कृष्णा देवी पटेल ने 71210 वोटों से हराया। अपने आप में यह बड़ी शर्मनाक हार रही। इस चुनाव में बड़ी संख्या में भाजपा का ब्राह्मण वोट खिसक गया। इसकी एक वजह बसपा का ब्राह्मण प्रत्याशी मयंक द्विवेदी को मैदान में उतारना रहा।

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वहीं चित्रकूट में बीजेपी प्रत्याशी से नाराजगी भी रही। बसपा प्रत्याशी को ढाई लाख के आसपास वोट मिले। चुनावी गणित के जानकार बताते हैं इनमें बड़ी संख्या में भाजपा के ही ब्राह्मण वोटर थे, जो खिसककर बसपा के पाले में चले गए। बांदा सदर विधानसभा में बीजेपी के प्रकाश द्विवेदी विधायक हैं।

योगी-मोदी के नाम पर जीतें, मगर जनता से दूर

कुछ दिन पहले बांदा के बबेरू में पार्टी ने नगर पंचायत के उप चुनाव में जीत हासिल की। यह बांदा में बीजेपी के संजीवनी की तरह है। खासकर स्थानीय नेताओं के लिए जो मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए थे। यही वजह रही कि इस जीत का सेहरा बांधने के लिए स्थानीय नेताओं में होड़ सी रही। संगठन के पदाधिकारी भी पीछे नहीं रहे। सपा विधायक के क्षेत्र में यह जीत मायने रखती है।

पार्टी के लिए नए अध्यक्ष का चुनाव बड़ी चुनौती

लेकिन, यह भी समझना होगा कि इस जीत से आगे 2027 का रास्ता आसान नहीं हो जाता। स्थानीय पार्टी नेता नाम न छापने की शर्त पर स्वीकारते हैं कि पार्टी की हार की एक बड़ी वजह संगठनात्मक सुस्ती है। इसमें दो राय नहीं है कि बीते कुछ साल से पार्टी संगठनात्मक स्तर पर

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जिले में कमजोर साबित हुई है। इस तरह की बातें भी उठती रही हैं कि संगठन सभी को साथ लेकर नहीं चल पाया। ऐसे में नए अध्यक्ष को लेकर बड़े नेताओं को समझना ही होगा कि यह चुनाव 2027 में कई तरह से असर डालेगा।

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