समरनीत न्यूज, बांदा: बांदा में गुरु पूर्णिमा पर सभी जगह गुरुओं का पूजन हुआ। शिष्यों ने हर क्षेत्र में अपने गुरुओं को सम्मान देते हुए उनका आशीर्वाद लिया। गुरुकुल कत्थक साधना केंद्र में भी गुरु पूर्णिमा पर शिष्याओं ने अपनी गुरु एवं गुरुकुल कत्थक साधना केंद्र की डायरेक्टर अनुपमा त्रिपाठी का सम्मान किया। तिलक लगाकर पूजन कर उनका आशीवार्द लिया। इस अवसर पर कत्थक गुरु अनुपमा ने गुरु पूर्णिमा पर अपने विचार भी प्रकट किए।
‘संबंध भारतीय सामाजिक व्यवस्था का आधार’
अनुपमा ने कहा कि भारत एक सांस्कृतिक और सामाजिक आधार पर चलने वाला देश है। संबंधों को भारतीय सामाजिक व्यवस्था का आधार माना गया है। इसी कड़ी में गुरु-शिष्य संबंध को सबसे पवित्र और सर्वोच्च माना गया है। किसी भी ज्ञान को प्राप्त करने के लिए गुरु का होना अति आवश्यक है, धनुर विद्या हो, नृत्य हो, गायन हो, चित्रकला हो या स्थापत्य हो।
कबीर जी ने इस संबंध में कहा:
- गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
अर्थात गुरु एक मूर्तिकार की तरह होता है जो अपने शिष्यों को आकार देता है और उन्हें योग्य बनाता है। गुरु बाहर से सख्त होते हुए भी शिष्य को गुप्त रूप से सहायता प्रदान करता है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत गायन, वादन और नृत्य में गुरु शिष्य परंपरा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह केवल कला सिखाने का माध्यम नहीं बल्कि एक संस्कृति है, जिसमें शिष्य का व्यक्तित्व और उसकी दृष्टि आकार लेती है।
गुरु शिष्य परंपरा का महत्व
शिक्षा प्रणाली में बदलाव के बावजूद गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व कम नहीं हुआ है। आज भी कई क्षेत्रों में, जैसे संगीत, कला, और योग में यह परंपरा जीवित है। इनमें गुरु का मार्गदर्शन और
ये भी पढ़ें: वाराणसी: 129 साल के पद्मश्री योग गुरु शिवानंद बाबा का निधन, यह बताया था लंबी आयु का राज..
शिक्षण अनिवार्य माना जाता है। गुरु-शिष्य परंपरा हमें यह सिखाती है कि ज्ञान का संचार
सिद्धांत और कक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवन दर्शन है जो गुरु के मार्गदर्शन में शिष्य का जीवन पूर्णता की ओर ले जाता है।
गुरु-शिष्य दोनों का महत्व

इस परंपरा में गुरु और शिष्य दोनों का महत्व है, जो शिक्षण प्रक्रिया में अधिक प्रभावशाली और सार्थक है। मूलरूप से, गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का एक मूल्यवान आधार है, जो हमें शिक्षा के वास्तविक अर्थ और महत्व को समझने में मदद करती है। इस परंपरा के माध्यम से हम न केवल ज्ञान सीखते हैं, बल्कि जीवन के गंभीर रहस्य और नैतिकता को भी समझते हैं।
शास्त्रीय नृत्य-संगीत में गंडा बंधन का रिवाज
गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत शास्त्रीय नृत्य और संगीत में गंडा बंधन का रिवाज़ है। गुरु अपने शिष्य को गंडा बांधते हैं और इससे शिष्य दूसरा गुरु नहीं बना सकता। गठबंधन की यह रस्म वस्तुतः पूजा के साथ की जाती है। इससे गुरु अपने शिष्य को अपने घराने में शामिल कर लेता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव पहले गुरु हैं जिन्होंने सप्त ऋषियों (संतों) को योग, धर्म और शास्त्रों की शिक्षा दी।
ये भी पढ़ें: UP : पूजा-पाठ के साथ मनाई गुरु पूर्णिमा, गुरुओं का हुआ सम्मान
वैश्विक क्षमा दिवस: बांदा की महिला बुद्धिजीवियों के विचार..बिगड़े रिश्तों को संवारने का मौका आज..
जानिए! नए पुलिस उपाधीक्षक पीयूष पांडेय को..लखीमपुर खीरी से गहरा नाता
बांदा शिक्षक संघ ने मांगों को लेकर सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा ज्ञापन
लिपस्टिक को संस्कृत में क्या कहते हैं..जानकर हैरान हो जाएंगे आप!