समरनीति न्यूज, डेस्कः सच्चाई और इतिहास से मुंह छिपाने में माहिर पाकिस्तान की एक और करतूत सामने आई है। पाकिस्तान के लाहौर की सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश हुकुमत ने वीर शहीद सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी थी। अब वहां मस्जिद बना दी गई है। शहीदों की शहादत के नामों-निशान पूरी तरह मिटा से दिए गए हैं। देश के इन वीर सपूतों को याद रखने वाले पाकिस्तान में शायद ही कुछ लोग हों।
इतिहास छिपाने में माहिर है पाकिस्तान
हालात ऐसे हैं कि जहां भगत सिंह और उनके दोस्तों को फांसी दी गई थी, वहां पाकिस्तान ने मस्जिद बना डाली है। एक अराजक और कट्टरपंथियों वाले देश पाकिस्तान की हुकुमतें शायद देश के इन वीर शहीदों की यादें और उनसे जुड़ी स्मृतियों-निशानियों को लोगों के जहन से मिटा देना चाहती थीं। इसी के चलते ऐसे कारनामे किए गए।
मीडिया रिपोर्ट्स-कुलदीप नैय्यर की किताब के तथ्य
मीडिया रिपोर्ट्स और वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर की किताब से तथ्य सामने आए हैं। जहां भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी हुई थी उन कोठरियों की जगह के सामने पाकिस्तान में मस्जिद बना दी गई है। वहीं भगत सिंह के फांसी के तख्ते वाली जगह को चौराहा बना दिया गया है। ऐसे में वहां से रोज गुजरतीं गाड़ियों की धूल-मिट्टी में फांसी का तख्ता कहां गुम हो गया है, किसी को पता तक नहीं।
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वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक लेखक कुलदीप सिंह नैयर द्वारा भी अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया गया था। दरअसल, नैयर ने एक किताब शहीद भगत सिंह पर लिखी थी। इसकी भूमिका में साफ कर दिया था कि जहां भगत सिंह को फांसी हुई, उस जगह की स्थिति आज बेहद खराब है।
फांसी के तख्त धूल-मिट्टी में खोए, नामों-निशान नहीं
नैय्यर की किताब के अनुसार जिन जगहों पर भगत सिंह और उनके दोस्तों को फांसी देने वाले तख्ते थे, अब वहां चौराहा बनाकर गाड़ियां चलाई जा रही हैं। नैय्यर लिखते हैं कि पाकिस्तान में एक अजीब सी धारणा बनाई गई है कि आजादी की लड़ाई में सिर्फ एक पंजाबी की जान गई थी। उन्होंने लिखा है कि 80 के दशक में पाकिस्तान के लाहौर में एक विश्व पंजाबी सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन को जिस हाल में किया गया था वहां सिर्फ भगत सिंह की फोटो लगाई गई थी, जबकि आजादी के आंदोलन में असंख्य पंजाबियों-सिखों ने देश के लिए प्राण न्यौछावर किए थे।
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