समरनीति न्यूज, डेस्कः अगर आपके जीवन में पत्नी से अनबन और झगड़ा-फसाद के हालात हैं तो यह मत समझिये कि आप ही परेशान हैं बल्कि इस दुनिया के कई महान लोग भी इस तरह के हालात से जूझते रहे हैं। फिर भी उन्होंने अपने सफल कार्यों से दुनिया में अमिट छाप छोड़ी है। ऐसा ही एक नाम है अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का। अगर अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि अब्राहम लिंकन अमेरिका के सबसे सफल राष्ट्रपतियों में से एक थे लेकिन उनका दांपत्य जीवन काफी कलहपूर्ण रहा था।
आक्रमक और कलहपूर्ण थीं पत्नी मैरी डाट
उनके जीवनीकारों ने यहां तक लिखा है कि लिंकन के दांपत्य जीवन में हालात इतने खराब थे कि कई बार पत्नी से झगड़े और कलह से बचने के लिए लिंकन अपने दफ्तर में ही सो जाते थे। कहा जाता है कि उन्होंने पूरी जिंदगी खुद को पत्नी से परेशान ही पाया। दरअसल, कहा तो यहां तक जाता है कि लिंकन ने अपनी जिंदगी में जितना सम्मान पाया और प्रसिद्धि हासिल की।
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उनकी पत्नी को उतना ही लालची और खुदगर्ज इंसान के रूप में याद किया जाता है। बताया जाता है कि लिंकन ने मैरी डाट नाम की महिला से पूरे बेमन शादी की थी। वह जानते थे कि वह और मैरी डाट एक दूसरे के बिल्कुल उलट हैं। शादी से पहले उनकी सगाई एक बार टूट भी गई थी लेकिन मैरी, लिंकन से शादी की जिद्द पर अड़ी हुईं थी। आखिरकार मैरी किसी तरह अपने इस काम में सफल भी रहीं।
अपनी शादी को बताया था विनाशकारी
लिंकन पर लिखी गई किताब ‘लिंकन द अननोन’ के लेखक डेल कारनेगी ने लिखा है कि जब पहली बार सगाई टूटी तो लिंकन का मानना था कि अगर यह शादी हुई तो विनाशकारी परिणाम होंगे। अब इसे नियति ही कहा जाएगा कि लिंकन की शादी इसके बावजूद मैरी से ही हुई।
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कहते हैं कि मैरी जितनी आक्रमक और कलहपूर्ण महिला थीं लिंकन उसके विपरीत उतने ही शांत और साधारण व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। यही वजह थी कि कलह से बचने के लिए वह खुद पत्नी से बचने की कोशिश में रहते थे और अक्सर रातें दफ्तर में ही सोकर गुजार देते थे।
खुदगर्ज और लालची बनी थी इमेज
वहीं खुदगर्ज और लालची मैरी को यह आत्मविश्वास जरूर था कि उनका पति एक दिन जरूर अमेरिका का राष्ट्रपति बनकर रहेगा। तमाम मुश्किलों और निराशाओं को पीछे छोड़ते हुए लिंकन आगे बढ़ते रहे।
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आखिरकार 1860 में शिकागो में नवगठित रिपब्लिकन पार्टी ने राष्ट्रपति पद के लिए लिंकन के नाम का चयन किया। पार्टी के भीतर के लोगों ने भी उनके नाम का भारी विरोध किया। लेकिन लिंकन की आवाज सीधे जनता तक पहुंच रही थी।
दास प्रथा कर दी थी समाप्त
दास प्रथा पर लिंकन कहते थे कि अगर दास प्रथा गलत नहीं है तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं है। बहरहाल, लिंकन जीते और राष्ट्रपति बनने के बाद 1 जनवरी 1963 को उन्होंने दासप्रथा के खिलाफ कानून पर हस्ताक्षर करके इसे हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। हांलाकि इसी से नाराज होकर एक सिरफिरे ने उनकी हत्या कर दी थी।